चींटी और कबूतर
एक नदी किनारे चीटियों का एक बिल था। वहां बहुत सारी चिड़िया रहती थी। उनमें से एक बहुत ही छोटी चींटी थी। उसका नाम चंचला था।वह बहुत ही शरारती थी। हमेशा कुछ ना कुछ शरारत करती रहती थी। चंचला की शरारतों से सभी बहुत परेशान थे। सब हमेशा उसे समझाते परंतु वह किसी की नहीं सुनती थी। वहीं पास में एक पेड़ था।
जिस पर सोना नाम का एक कबूतर अपने परिवार के साथ रहता था। सोना बहुत ही मददगार था। वह सुबह अपने घोंसले से निकल जाता और दिनभर आकाश में उड़ता शाम को अपने छोटे-छोटे बच्चों के लिए दाने लेकर आता प्रतिदिन चींटी की शरारतें देखकर सोना कबूतर मुस्कुराता। एक दिन सोना ने डाल पर बैठे-बैठे नीचे देखा की चंचला नदी के पानी में बहती जा रही है। वह बहुत घबरा गया पहले तो उसे चंचला पर बहुत क्रोध आया क्योंकि वह किसी का कहना नहीं मानती थी। पर दूसरे क्षण ही उसके मन में चंचला के लिए दया आ गई।
सोना ने अपनी चोट से एक पत्ता तोड़कर चंचला के पास पानी में गिरा दिया। चंचला उस पते पर चढ़ गई पत्ता बहका नदी के किनारे पर लग गया और चंचला पानी से बाहर आ गई। पानी से बाहर आकर उसने सोना कबूतर को धन्यवाद किया। उसने फिर कभी भी शरारत ना करने की कसम खाई। यह देखकर सभी चीटियां बहुत प्रसन्न हुई उन्होंने सोना कबूतर की प्रशंसा की और चंचला को माफ कर दिया।
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